स्वर्ण आरक्षण क्या है किसे मिलेगा फायदा क्या है इसके नियम कानून जाने सबकुछ - StudyWithAMC : ITI, Apprentice, Technical Trade, Govt Jobs

Post Top Ad

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

स्वर्ण आरक्षण क्या है किसे मिलेगा फायदा क्या है इसके नियम कानून जाने सबकुछ

स्वर्ण आरक्षण किसे मिलेगा फायदा और कैसे मिलेगा फायदा...


केंद्र सरकार ने 07 जनवरी 2019 को महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों (सामान्य वर्ग) के लिए सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में 10% आरक्षण दिए जाने की घोषणा की है. केंद्र सरकार इसके लिए जल्द ही लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश करेगी.

संविधान में होगा संशोधन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस संबंध में संवैधानिक संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. सरकार इस संबंध में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक 2018 (कांस्टीट्यूशन एमेंडमेंट बिल टू प्रोवाइड रिजर्वेशन टू इकोनॉमिक वीकर सेक्शन -2018) लोकसभा में लेकर आएगी. इस विधेयक के जरिए संविधान की धारा 15 व 16 में संशोधन किया जाएगा. सवर्णों को दिया जाने वाला आरक्षण मौजूदा 50 फीसदी आरक्षण से अलग होगा.

आरक्षण की पात्रता के लोग सामान्य श्रेणी के वे लोग होंगे -
  1. जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से कम हो
  2. जिनके पास 5 हेक्टेयर से कम की खेती की जमीन हो
  3. जिनके पास 1000 स्क्वायर फीट से कम का घर हो
  4. जिनके पास निगम की 109 गज से कम अधिसूचित जमीन हो
  5. जिनके पास 209 गज से कम की निगम की गैर-अधिसूचित जमीन हो
  6. जो अभी तक किसी भी तरह के आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते थे

अनुच्छेद 15 के प्रावधान

अनुच्छेद 15 समस्त नागरिकों को समानता का अधिकार देता है. अनुच्छेद 15 (1) के अनुसार राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा. अनुच्छेद 15 के अंतर्गत ही अनुच्छेद 15 (4) और 15 (5) में सामाजिक और शैक्षिणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए विशेष उपबंध की व्यवस्था की गई है. यहां कहीं भी आर्थिक शब्द का प्रयोग नहीं है. ऐसे में सवर्णों को आरक्षण देने के लिए सरकार को इस अनुच्छेद में आर्थिक रूप से कमजोर शब्द जोड़ने की जरूरत पड़ेगी.

अनुच्छेद-16 के प्रावधान

अनुच्छेद-16 सार्वजनिक रोजगार के संबंध में अवसर की समानता की गारंटी देता है और राज्य को किसी के भी खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है. किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों का सार्वजनिक सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनुश्चित करने के लिए उनके लाभार्थ सकारात्मक कार्रवाई के उपायों के कार्यान्वयन हेतु अपवाद बनाए जाते हैं, साथ ही किसी धार्मिक संस्थान के एक पद को उस धर्म का अनुसरण करने वाले व्यक्ति के लिए आरक्षित किया जाता है.

भारत में आरक्षण का उद्देश्य और वर्तमान स्थिति
आरक्षण की व्यवस्था केंद्र और राज्य में सरकारी नौकरियों, कल्याणकारी योजनाओं, चुनाव और शिक्षा के क्षेत्र में हर वर्ग की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए की गई ताकि समाज के हर वर्ग को आगे आने का मौका मिले. इसके लिए पिछड़े वर्गों को तीन श्रेणियों - अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में बांटा गया. इस समय भारत में कुल 49.5% आरक्षण दिया जा रहा है जिसका वर्गीकरण इस प्रकार है:
अनुसूचित जाति (SC):15%
अनुसूचित जनजाति (ST): 7.5%
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC): 27%
कुल आरक्षण: 49.5 %

किन्हें मिलेगा फायदा?

केंद्र सरकार द्वारा सवर्णों को दिए जाने वाले 10% आरक्षण का लाभ केवल हिन्दू सवर्णों को ही नहीं मिलेगा अपितु सभी धर्मों अथवा सम्प्रदायों के सामान्य वर्ग के उन लोगों को मिलेगा जो इस श्रेणी की पात्रता शर्तों का मानदंड रखते हों. यह आरक्षण धर्म, जाति, रंग अथवा किसी अन्य प्रकार के भेदभाव के आधार पर नहीं दिया गया है.



इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ 1992 मामला
इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम केंद्र सरकार (यूनियन ऑफ़ इंडिया) में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए अलग से आरक्षण लागू करने को सही ठहराया था. वर्ष 1992 में पहली बार इंदिरा साहनी केस में कहा गया कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के अधिकारियों और कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण सही नहीं है. संसद ने इस पर विचार किया और 77वां संविधान संशोधन लाया गया. इस संशोधन में कहा गया कि राज्य सरकार और केन्द्र सरकार को यह अधिकार है कि वह पदोन्नति में भी आरक्षण दे सकती है. यह मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में गया और वहां से फैसला आया कि आरक्षण दिया जा सकता है लेकिन वरिष्ठता नहीं मिलेगी. इसके उपरांत 85वां संविधान संशोधन उसी संसद से पास हुआ और यह कहा गया कि कॉनसीक्वैंशियल सीनियॉरिटी भी दी जायेगी. इन्दिरा साहनी प्रकरण में उच्चतम न्यायालय की जजों वाली संविधानिक पीठ ने दिनांक 16.11.1992 को संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए राजकीय संवाओं में पदोन्नति में आरक्षण को सही नहीं माना तथा यह आदेश दिया कि इन वर्गों को पदोन्नति में आरक्षण केवल अगले 5 वर्ष तक ही यथावत रखा जाएगा.

Download PDF- Click Here

Post Top Ad