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शनिवार, 1 जुलाई 2017

मशीनिस्ट शॉप थ्योरी | Technical Trade.. Railway

मशीनिस्ट शॉप थ्योरी | Technical Trade.. Railway...


कार्य करने की दर शक्ति कहलाती है।

जब कोई प्रत्यास्थ पिण्ड किसी बल के कारण निरूपित होता है, तो उसमें संचित ऊर्जा विकृति ऊर्जा कहलाती है।

ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न ही नष्ट की जा सकती है। इसका केवल रूप बदल सकता है।

किसी स्थिर बल आघूर्ण (torque) जो t समय तक कार्य करता है, का कोणीय आवेग 1 t होता है।

वह बल आघूर्ण जो किसी पिण्ड पर बहुत कम समय के लिए कार्य करता है, आवेगी बल आघूर्ण कहलाता है।

यदि कोई पिण्ड रेखीय और कोणीय ऊर्जा, रेखीय और वक्रीय गतिज ऊर्जाओं के योग के बराबर होती है।

किसी कण का स्थिर बिन्दु से अधिकतम विस्थापन आयाम कहलाता है। यह वृत्त की त्रिज्या r होती है।

किसी कण द्वारा एक आवर्त पूरा करने में लगा समय आवर्त काल कहलाता है।

कण द्वारा एक सेकण्ड में लगाये गये चक्करों की कुल संख्या आवृत्ति कहलाती है।

जब कोई कण सरल आवृति गति या कम्पन करता है, तो कण की स्थिति तथा गति की दिशा भिन्न-भिन्न समयों पर भिन्न-भिन्न होती है।

यदि किसी भारी कण को एक भारहीन तथा लम्बाई में न बढ़ने वाले लचकदार धागे से बांधकर किसी दृढ़ आधार से लटका दिया जाय तो यह संयोजन सरल लोलक कहलाता है।

जब लोलक बिन्दु A पर होता है तब वह साम्य स्थिति में होता है। अब यदि लोलक को बिन्दु B या C पर लाकर छोड़ा जाता है, तो लोलक बिन्दु B और C के बीच में दोलन गति करता है।

जिस लोलक का आवर्तकाल 2 sec होता है वह सेकण्ड लोलक कहलाता है।

किसी निश्चित बिन्दु के परित: किसी निश्चित दिशा में घूमे गये कोण से कोणीय विस्थापन प्रदर्शित किया जाता है।



इकाई समय में कोणीय विस्थापन परिवर्तन की दर को कोणीय वेग कहते हैं।

इकाई समय में कोणीय वेग में परिवर्तन की दर कोणीय त्वरण कहलाती है।

यदि कोई पिण्ड किसी वृत्ताकार पथ में घूम रहा हो, तो पिण्ड के वेग की दिशा में त्वरण को सपर्शीय त्वरण कहते हैं। यह वृत्ताकार पथ पर सपर्शीय होता है और वेग की दिशा के समानान्तर होता है।

यदि कोई पिण्ड वृत्ताकार पथ के अनुदिश घूम रहा हो तो वह त्वरण जो पिण्ड के वेग की लम्ब दिशा में है, 
अभिलम्ब त्वरण कहलाता है। यह वृत्ताकार पथ के केन्द्र की दिशा में कार्य करता है। यह त्वरण त्रिज्यीय त्वरण या अभिकेन्द्रीय त्वरण भी कहलाता है।

दोलन केन्द्र को कभी-कभी भ्रमन केन्द्र भी कहते हैं। भ्रमन केन्द्र लटके हुए पिण्ड का वह बिन्दु है जिस पर चोट करने पर टेक पर प्रतिक्रिया शून्य होती है।
मशीन का प्रत्येक अंग, जो किन्हीं और अंगों के सापेक्ष गति करता है, कड़ी या अवयव कहलाता है।

ढृढ़ कड़ी- जिनमें, गति पारेक्षण करते समय, कोई विरूपण नहीं होता, ढृढ़ कड़ी कहलाती है। वास्तव में कोई भी कड़ी पूर्णरूप से ढृढ़ कड़ी नहीं होती है।

लचीली कड़ी- जो कड़ी गति पारेषण के समय कुछ विरूपित हो जाती है, लचीली कड़ी कहलाती है।

तरल कड़ी- जब कोई तरल गति पारेषण के लिए उपयोग में लाया जाता है, तो यह तरल कड़ी कहलाता है।

पूर्णत: निरूद्ध गति- जब किसी मशीन के युगल एक निश्चित दिशा में सापेक्ष गति करते हों, चाहे बल किसी भी दिशा में लगा हो, तो ऐसी गति को पूर्णत: निरूद्ध कहते हैं।

अपूर्ण निरूद्ध गति- यदि किसी मशीन के युगल की सापेक्ष गति एक से अधिक दिशा में होती है, तो ऐसी गति को अपूर्ण निरूद्ध गति कहते हैं।

सफलतापूर्वक निरूद्ध गति- यदि किसी मशीन के युगल किसी इच्छित दिशा में ही सापेक्ष गति करते हों, तो ऐसी गति को सफलतापूर्वक निरूद्ध गति कहते हैं।

ढांचा किसी मशीन के गति करने वाले अवयवों या अंगों को आलम्ब प्रदान करता है।

सरकने वाला युगल के दो अवयव या कड़ी एस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हों कि एक अवयव दूसरे अवयव के सापेक्ष केवल सरक कर गति करता हो, तो ये युगल सरकने वाला युगल कहलाता है।

घुमाऊ युगल के दो अवयव या कड़ी इस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हों कि एक अवयव दूसरे अवयव की स्थिर अक्ष के परित: घुमता है, तो ये युगल घुमाऊ युगल कहलाते हैं।

लुढ़कन युगल के दो अवयव इस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हों कि एक अवयव दूसरे स्थिर अवयव के ऊपर लुढ़कता है, तो ये युगल लुढ़कन युगल कहलाते हैं।

पेंच युगल का एक अवयव पेंच या चूड़ियों की सहायता से दूसरे अवयव के सापेक्ष गति करता है, तो वे पेंच युगल कहलाते हैं।

निम्न युगल के दो अवयव एक दूसरे की सतह पर मिलते हैं जब उनके मध्य में सापेक्ष गति होती है और एक अवयव की सतह दूसरे अवयव के ऊपर सरकन गति या घुमाऊ गति करती है, तो ऐसे युगल निम्न  युगल कहलाते हैं।

उच्च युगल के दो अवयव एक दूसरे से एक बिन्दु या रेखा पर मिलते हैं जब सापेक्ष गति होती है और वे आंशिक घुमाऊ या आंशिक सरकन दोनों प्रकार की गति करते है, तो ऐसे युगल उच्च युगल कहलाते हैं।

बन्द युगल के दो कड़ियाँ या अवयव किसी यान्त्रिक विधि से जोड़े जाते हैं तो बन्द युगल कहलाता है।

खुला युगल की दो कड़ियाँ या अवयवों को यान्त्रिक विधि से नहीं जोड़ा जाता है तो वह खुला युगल कहलाता है।

जब किसी बिन्दु या कण का वेग किसी स्थिर बिन्दु के सापेक्ष बताया जाता हैं, तो वह वेग परम वेग या केवल वेग कहलाता है।

जब किसी बिन्दु या कण का वेग गतिमान बिन्दु या कण के सापेक्ष निकाला जाता है तो वह वेग, सापेक्ष वेग कहलाता है।

सबसे सरल शुद्ध गति चेन चार छड़ो से बनी होती है। ये चार युगल बनाती है। ये छड़े विभिन्न लम्बाइयों की हो सकती है। सबसे महत्वपूर्ण चार निम्न युगलों वाली चेनें हैं। प्रत्येक युगल घुमाऊ या सरकने वाला होता है।

क्रेंक तथा लीवर यन्त्र विन्यास में जो कड़ी पूरा चक्कर काटती है, क्रेंक कहलाती है और जो अधूरा चक्कर लगाती है लीवर कहलाती है।

धरन इंजन या क्रेंक तथा लीवर यन्त्र विन्यास यह घुमाऊ गति को पश्चाग्र गति में बदलने के काम में आता है।

दोहरा क्रेंक यन्त्र विन्यास यह यंत्र विन्यास अधिकतर रेल इंजनों के पहियों में प्रयोग किया जाता है। यह एक पहिए की घुमाऊ गति को दूसरे पहिये पर पारेषित करता है।

दोहरा लीवर यन्त्र विन्यास यह इंजन सूचक में प्रयोग किया जाता है।

एकल स्लाइडर क्रेंक यन्त्र विन्यास इसका प्रयोग पश्चाग्र गति को घुमाऊ गति में बदलने में किया जाता है। यह पश्चाग्र इंजन यन्त्र विन्यास भी कहलाता है।

दोलन सिलिण्डर इंजन इसका प्रयोग पश्चाग्र गति को घुमाऊ गति में परिवर्तित करने में किया जाता है।

द्रुत वापसी यन्त्र विन्यास का प्रयोग शेपर तथा स्लॉटर मशीनों में किया जाता है, इसका क्रेंक समान कोणीय वेग से घूमता है, जिससे कर्तन आघात तथा द्रुत वापसी आघात मिलते है। वापसी आघात का समय कर्तन आघात के समय से कम होता है इसलिए यह प्रबन्ध द्रुत वापसी यन्त्र विन्यास कहलाता है।

दोहरा सरक क्रेंक यन्त्र विन्यास में दो घुमाऊ तथा दो सरक युगल होते हैं। यह दीर्घ वृत खींचने का यन्त्र विन्यास भी कहलाता है।

तीन या तीन से अधिक अवयवों को आपस में जोड़ने पर बना प्रबन्धन चेन होता है। इसमें प्रत्येक अवयव या कड़ी दो अन्य अवयवों से जुड़ी होती है।

बन्द चेन के अवयवों में कोई सापेक्ष गति नहीं होती है। यह केवल एक दृढ़ ढांचा बनाती है।

निरूद्ध चेन के विभिन्न कड़ियों में सापेक्ष गति पूर्णतया निरूद्ध होती है। इस चेन का प्रयोग विभिन्न प्रकार के यन्त्र विन्यास तथा मशीनों के बनाने में होता है।

अनिरूद्ध चेन की कड़ियों में सापेक्ष गति निरूद्ध या अनिश्चित होती है। इस चेन का प्रायोगिक दृष्टि से प्रयोग नहीं किया जाता है।

शुद्ध गति युगलों को मिलाने से बनीं चेन शुद्ध गति चेन कहलाती है। इस चेन की प्रत्येक कड़ी दो युगलों का सदस्य होती है और दो कड़ियों के बीच सापेक्ष गति पूर्णत: निरूद्ध होती है। यह निरूद्ध चेन भी कहलाती है।

सरल शुद्ध गति चेन चार युगलों से बनी होती है तथा यौगिक शुद्ध गति चेन चार से अधिक युगलों के मिलाने से बनती है।

जब किसी शुद्ध गति चेन की एक कड़ी स्थिर कर दी जाए तो इस चेन को यन्त्र विन्यास कहते हैं। चार कड़ियों से बना यन्त्र विन्यास, सरल यन्त्र विन्यास कहलाता है और जिस यन्त्र विन्यास में चार से अधिक कड़ियाँ होती हैं वह यौगित यन्त्र विन्यास कहलाता है।

जब किसी यन्त्र विन्यास से शक्ति पारेषण या अमुक प्रकार का कार्य किया जाता है, तो वह मशीन कहलाता है।

किसी शुद्ध गति चेन में कोई सी भी कड़ी को स्थिर किया जा सकता है। अत: किसी चेन में जितनी कड़ियाँ होती है हम उतने ही यन्त्र विन्यास प्राप्त कर सकते हैं। इस भाँति प्राप्त प्रत्येक यन्त्र विन्यास प्रारम्भिक यन्त्र विन्यास का उत्क्रमण कहलाता है।

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